इन दिनों सोशल मीडिया पर भगवान विष्णु के दशावतार की पेंटिंग तेजी से वायरल हो रही है। हांलाकि अभी इस पेंटिंग को बनाने वाले चित्रकार का नाम सामने नहीं आया है। लेकिन पेंटिंग देखने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि चित्रकार ने जानबूझकर हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए भगवान के विष्णु के दशावतारों को चित्रित तो किया है, लेकिन इतिहास के प्रमुख स्रोतों की अनदेखी भी की है।
हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए इतिहास की अनदेखी
इतिहास अतीत और वर्तमान के बीच की एक ऐसी अविछिन्न प्रक्रिया हैं, जिसमें हम सभी अतीत का अध्ययन करते हुए वर्तमान उन तथ्यों का विश्लेष्ण करते हैं तथा उन्हीं तथ्यों के आधार भविष्य का निर्धारण भी करते हैं। कोई भी इंसान हो उसे धर्म, जाति, संस्कार आदि सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर इतिहास का मूल्यांकन करना चाहिए। तभी समाज के सामने सार्थक इतिहास प्रस्तुत किया जा सकेगा अन्यथा इतिहास केवल पौराणिक कथा बनकर ही रह जाएगा। हिंदुत्व के पूर्वाग्रह से ग्रसित कुछ ऐसी ही काम भगवान विष्णु के दशावतार वाली इस पेंटिंग के साथ किया गया है।
गौरतलब है कि दशावतार की इस पेंटिंग को ध्यान गौर करने पर यह पता चलता है कि कितनी होशियारी से इतिहास के स्रोतों की अनेदखी करते हुए सिर्फ और सिर्फ हिंदुत्व को बढ़ावा देने की कोशिश की गई है। इस पेंटिंग में भगवान विष्णु के दस अवतारों को तो दर्शाया गया है लेकिन इसमें से बड़ी चालाकी के साथ भगवान बुद्ध को हटा दिया गया है।
जबकि कृष्ण के साथ बलराम को स्थापित किया गया है। इतिहास के स्रोतों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि कुछ इतिहास की पुस्तकों में भगवान विष्णु के दशावतारों में मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम, बुद्ध तथा कल्कि का नाम लिखा गया है। क्योंकि श्रीकृष्ण को ईश्वर का साक्षात् स्वरूप बताया गया है, ऐसे में कृष्ण की जगह बलराम को रखा गया। जबकि अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों में विष्णु के अवतारों में मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध तथा कल्कि को बताया गया है।
इतिहास की प्रमाणिक पुस्तकों से यह स्पष्ट होता है कि दोनों ही परिस्थितियों में भगवान बुद्ध का नाम श्रीहरि विष्णु के दशावतारों में शामिल है।
अत: भगवान विष्णु के दशावतार वाली जो पेंटिंग इस समय सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, उसमें कहीं ना कहीं इतिहास के स्रोतों को तोड़ने मरोड़ने की कोशिश की गई है।
इतिहास के दृष्टिकोण से भगवान विष्णु के दशावतार से जुड़े सटीक तथ्य
अवतारवाद का सर्वप्रथम उल्लेख भगवेद्गीता में मिलता है। वैसे तो विष्णु के अधिकतम अवतारों की संख्या 24 है। लेकिन मत्स्य पुराण में प्रमुख रूप से 10 अवतारों का उल्लेख मिलता है। इन अवतारों में कृष्ण का नाम नहीं है क्योंकि कृष्ण स्वयं भगवान के साक्षात स्वरूप हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के दशावतार निम्नलिखित है—
1—मत्स्य 2— कच्छप 3—वाराह 4— नृसिंह 5— वामन 6— परशुराम 7— राम
8—कृष्ण 9— बुद्ध 10— कल्कि
श्रीकृष्ण का प्रथम उल्लेख छान्दोग्य उपनिषद में मिलता है। जबकि भागवत धर्म का प्रमुख केन्द्र मथुरा तथा आस पास के क्षेत्र थे। गुप्तकाल में भागवत धर्म अपने चरमोत्कर्ष पर था। पूरे भारत वर्ष में वैष्णव धर्म का सर्वाधिक प्रचलन 5वीं शताब्दी के मध्य हुआ। भगवान विष्णु का प्राचीनत उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है, जिसमें विष्णु को आकाश और सूर्य का स्वरूप माना गया है। जहां शतपथ ब्राह्मण में जल प्लावन के समय भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार का उल्लेख है वहीं तैतिरीय में वामन अवतार का उल्लेख किया गया है।
विष्णु अवतारों में वाराह अवतार सर्वाधिक लोकप्रिय रहा, क्योंकि वाराह अवतार का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। इतिहास की प्रथम पुस्कत इंडिका में भी मैगस्थनीज ने श्रीकृष्ण को हेराक्लिज नाम से उल्लेखित किया है।
भगवान वासुदेव को जैन धर्म के 22वें तीर्थकर अरिष्टनेमि का समकालीन माना गया है। जहां तक भगवान बुद्ध की बात है, जयदेव कृत गीतगोविंद से सूचित होता है कि पशुओं के प्रति दया दिखाने, रक्तरंजित पशुबलि प्रथाओं को रोकने के उद्देश्य विष्णु ने बुद्ध के रूप में अवतार ग्रहण किया। कालांतर में हिंदुओं ने अपनी उपासना पद्धति में बुद्ध को देवता रूप में मान्यता प्रदान कर दी। वहीं कलियुग के अंत में अवतरित होने वाले महाराज कल्कि का उल्लेख श्रीमद्भागवत महापुराण खंड 2 में किया गया है।
महाभारत के भीष्मपर्व का एक अंश है श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीता वस्तुतः महाकाव्य महाभारत के भीष्मपर्व का एक अंश है। श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 4 के 7वें और 8वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने कुरूक्षेत्र में अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा है—
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥7॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥8॥
अर्थात जब जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं जन्म लेता हूं। तथा सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों में अवतरित होता हूं। आप उपर्युक्त श्लोक से समझ सकते हैं कि किस प्रकार से धर्म की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेने की बात कही है।
1—मत्स्य अवतार
जब पृथ्वी भयंकर जल प्लावन से भयभीत हो गई तब भगवान विष्णु ने मत्स्य का रूप धारण कर मनु, उनके परिवार तथा सात ऋषियों को लेकर एक जलपोत में बैठाकर, जिसकी रस्सी मत्स्य की सींग से बंधी हुई थी, रक्षा की। उन्होंने इस महान प्रलय से वेदों की भी रक्षा की।
2— कच्छप अवतार
जल प्लावन के समय अमृत तथा रत्न आदि समस्त बहुमूल्य पदार्थ समुद्र में विलीन हो गए थे। विष्णु ने अपने एक बड़े कच्छप के रूप में अवतरित किया तथा समुद्रतल में प्रवेश कर गए। देवताओं ने उनकी पीठ पर मंदराचल पर्वत रखा तथा वासुकि नाग की डोरी बनाकर समुद्र मंथन किया। परिणामस्वरूप अमृत सहित 14 रत्नों की प्राप्ति हुई।
3—वराह अवतार
हिरण्याक्ष नामक राक्षस ने एक बार पृथ्वी को विश्व सिंधु के तल में ले जाकर छिपा दिया। तब पृथ्वी की रक्षा के लिए विष्णु ने एक विशाल वराह का रूप धारण किया। उन्होंने महाबली राक्षस हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को अपने दांतों से उठाकर यथास्थान स्थापित कर दिया।
4— नृसिंह अवतार
हिरण्यकश्यप नामक महापराक्रमी राक्षस ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि वह ना तो दिन में मरें, ना ही रात में तथा ना ही उसे देवता मार सकें अथवा मनुष्य। इस वरदान से मतवाला होकर उसने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। बल के घंमड में अपने पुत्र प्रह्लाद पर भी अत्याचार करने लगा। ऐसे में भगवान विष्णु ने अपने भक्त की पुकार पर नृसिंह यानि आधा मनुष्य आधा सिंह, का अवतार धारण कर गोधूलि बेला में हिरण्यकश्यप का वध कर दिया तथा प्रहलाद को राजा बनाया।
5—वामन अवतार
बलि नामक महान तेजस्वी और पराक्रमी राक्षस ने संसार पर अधिकार करने के लिए तपस्या करनी शुरू कर दी। बलि ने अपनी शक्ति इतनी बढ़ा कि देवता भी घबड़ा गए। देवगणों ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की फलस्वरूप बौने का रूप धारण कर श्री हरि विष्णु बलि के समक्ष उपस्थित हुए तथा दान में केवल तीन पग भूमि मांगी। बलि ने तीन पग भूमि देनी स्वीकार कर ली। फिर क्या था भगवान केवल दो पग में ही पृथ्वी, आकाश और अंतरिक्ष को नाप दिया। तीसरा पग नहीं उठाया तथा बलि के लिए पाताल छोड़ दिया। ऐसे में राजा बलि के लिए पाताल छोड़ दिया। अत: वह पृथ्वी को छोड़कर पाताल लोक चला गया।
6— परशुराम अवतार
यमदग्नि नामक ब्राह्मण के घर भगवान विष्णु ने परशुरामावतार लिया। एक बार यमदग्नि को कीत्तवीर्य नामक राजा ने लूटा। इससे परशुराम क्रुद्ध हो गए और कीत्तवीर्य को मार डाला। फिर क्या था कीत्तवीर्य के पुत्रों ने यमदग्नि को मार डाला। इस प्रकार परशुराम अत्यंत क्रूद्ध हुए और उन्होंने समस्त क्षत्रिय राजाओं का विनाश कर दिया। और ऐसा परशुराम ने 21 बार किया। अंतत: रामवतार में भगवान परशुराम का गर्व चूर्ण हुआ और वे तपस्या हेतु वन चले गए।
7—रामावतार
अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट दशरथ पुत्र के रूप में भगवान विष्णु ने रामावतार लिया। उन्होंने रावण सहित समस्त राक्षसों को मारकर पृथ्वी से राक्षस जाति का अंत कर दिया। विष्णु का यह अवतार उत्तर भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ।
8— श्रीकृष्ण
मथुरा के राजा कंस के अत्याचारों से प्रजा की रक्षा के लिए वासुदेव और देवकी पुत्र के रूप में विष्णु ने कृष्णावतार लिया। कृष्ण भी राम के समान लोकप्रिय हैं। उन्होंने अनेक अलौकिक चमत्कार दिखाए, लीलाएं की तथा कंस, जरासंध तथा शिशुपाल आदि अतातायियों का वध किया। इतना ही नहीं पांडवों का साथ देकर दुर्योधन सहित समस्त कौरवों का वध करवाया तथा पृथ्वी पर सत्य, न्याय तथा धर्म का प्रतिस्थापित किया।
9—बुद्ध अवतार
एक प्रकार से इन्हें भगवान विष्णु को अंतिम अवतार माना जाता है। जयदेव कृत गीतगोविंद से सूचित होता है कि पशुओं के प्रति दया दिखाने, रक्तरंजित पशुबलि प्रथाओं को रोकने के उद्देश्य विष्णु ने बुद्ध के रूप में अवतार ग्रहण किया। कालांतर में हिंदुओं ने अपनी उपासना पद्धति में बुद्ध को देवता रूप में मान्यता प्रदान कर दी। विष्णु का अभी यह वर्तमान स्वरूप है।
10— कल्कि
श्रीमद्भागवत महापुराण खंड 2 में उल्लेखित है कि कलियुग के अंत में भगवान विष्णु हाथ में तलवार लेकर एक श्वेत अश्व पर सवार होकर पृथ्वी पर अवतरित होंगे तथा दुष्टों का संहार करेंगे। तथा एक बार फिर से पृथ्वी पर सतयुग की तरह राज स्थापित होगा।
Source: kalamtimes.com
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